Shradh Karma Kya Hai | कनागत क्या है और क्यों जरूरी है ?


Shradh Karma Kya Hai Aur Kanagat Kyu Kahte Hai in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! ॐ पितृदेवाय नमः । आज हम हिन्दू धर्म के एक बहुत ही ख़ास कर्म के बारे में बात करने जा रहे है। आज हम श्राद्ध कर्म के बारे में विस्तार जानेंगे कि आखिर ये श्राद्ध कर्म क्या है? और क्यों ये श्राद्ध कर्म करना आवश्यक है ?

हम सभी जानते है कि हर वर्ष पूर्वजों के प्रति श्राद्ध कर्म किया जाता है। लेकिन ऐसा क्यों किया जाता है ? ये कर्म करना क्यों जरूरी होता है। इन सभी बातों का जवाब मिलेगा आपको इस लेख में। तो चलिए जल्दी से शुरू करते है : Shradh Karma Karna Kyun Jaruri Hota Hai in Hindi.


Shradh Karma Kya Hai | श्राद्ध कर्म क्या है ?


Shradh Karma or Kanagat Kya Hain in Hindi : दोस्तों ! हिन्दू धर्म में पितर देवताओं के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए और उनका ध्यान करने के निमित हर वर्ष श्राद्ध कर्म किया जाता है। हमारे पूर्वज हमारे लिए सदैव पूजनीय और आदरणीय है। उनका हम पर कभी ना चुकाए जाने वाला क़र्ज़ है। जिन पूर्वजों की वजह से आज हम सब अस्तित्व में है, उनके अतुलनीय योगदान और उनसे विरासत में मिले गुण एवं अनुभव के लिए हम उनके कृतज्ञ है।

शास्त्रों में कहा गया है –“श्रद्धयां इदम् श्राद्धम्” — इसका मतलब है कि पितरों के निमित श्रद्धा से जो कर्म किया जाता है, वही श्राद्ध है। श्राद्ध में पितरों को याद किया जाता है, उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष को विशेष महत्व दिया गया है। जो पूर्वज अपनी देह त्याग कर के चले जाते है, उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करने का विधान है।

क्यों कहते हैं श्राद्ध पक्ष को कनागत

Kyu Kahte Hai Shradh Paksha Ko Kanagat in Hindi : दोस्तों ! क्या आप जानते है कि श्राद्ध पक्ष को कनागत क्यों कहा जाता है ? इसका कारण ये है कि हर वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में ही श्राद्ध कर्म किया जाता है और इस समय सूर्य कन्या राशि में स्थित होने से कन्यागत हो जाता है। यही वजह है कि श्राद्ध पक्ष को कनागत के नाम से भी जाना जाता है।

हर वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रथमा से लेकर अमावस्या तिथि तक श्राद्ध कर्म किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है कि पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करना क्यों आवश्यक माना गया है ? तो चलिए जानते है :


पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करना क्यों आवश्यक है ?


Purvajon Ka Shradh Karma Karna Kyu Avashyak Hai in Hindi : ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि अपने मृत पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करने के लिए जो श्रद्धापूर्वक कर्म किया जाता है, उसे ही श्राद्ध कहा जाता है। पूर्वजों के लिए किया जाने वाला ये कर्म उनके प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता की भावना प्रकट करता है। श्राद्ध कर्म करना हमारा पूर्वजों के प्रति फ़र्ज़ अदा करना है। इससे घर में भी सुख-समृद्धि आती है, साथ ही पूर्वजों की भी तृप्ति हो जाती है।

मनुस्मृति के अनुसार :

मनुस्मृति में पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करने के बारे में इसप्रकार से कहा गया है —

यद्दद् ददाति विधिवत् सम्यक श्रद्धासमन्विते।
तत्तत् पितृणां भवति परत्रानन्तमक्षयम्।।

अर्थात् जो भी इंसान अपने पूर्वजों या पितर देवों को श्रद्धापूर्वक और विधि-विधान के साथ, जो भी वस्तुएं समर्पित करता है, वे सब परलोक में पितर देवों को अनंत और अक्षय रूप में प्राप्त होती है।

यमस्मृति के अनुसार :

यमस्मृति में भी यमराज द्वारा कहा गया है —

यावतो ग्रसते ग्रासान हव्यकव्येषु मंत्रवित्।
तावतो ग्रसते पिंडदान शरीरे ब्राह्मण: पिता।।

अर्थात् श्राद्ध के अन्न के जितने ग्रास मन्त्रवेत्ता ब्राह्मण अपने पेट में डालता है, उतने ही ग्रास श्राद्ध कराने वाले इंसान के पिता को प्राप्त होते है। पितर उस ब्राह्मण के शरीर में स्थित होकर उतने ही अन्न के ग्रास प्राप्त करता है।

यमस्मृति के अनुसार हमारे पूर्वज – परदादा, दादा और पिता ये तीनों ही अपनी संतान से श्राद्ध की इसप्रकार से आस लगाए रखते है, जैसे पेड़ों पर रहने वाले पक्षी पेड़ पर फल लगने की आस में बैठे रहते है। पूर्वजों को आशा रहती है कि हमारी संतान बड़े ही चाव से हमारे लिए दूध, खीर, शहद आदि से श्राद्ध कर्म अवश्य करेगी।

अथर्ववेद के अनुसार :

अथर्ववेद में कहा गया है —

त्वमग्न ईडितो जातवेदो वाडढव्यानि सुरभीणि कृत्वा।
प्रादा: पितृभ्यः।।

अर्थात् स्तुति करने योग्य हे अग्निदेव ! हमारे पितृगण जिस भी योनि में है या जहाँ भी रहते है, आप उनको जानने वाले हो। आप हमारे पितृगणों को हमारे द्वारा दिया गया स्वधाकृत हव्य सुगन्धित बनाकर प्रदान कीजिये।

ब्रह्मपुराण के अनुसार :

ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज सभी पितरों को अपने पाश से मुक्त कर देते है ताकि वे अपने परिवार या संतान से श्राद्ध के निमित भोजन ग्रहण कर लेवें। श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है। अपने पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक भोजन कराके उनका आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करना चाहिए।

जो भी लोग अपने पितरों या पूर्वजों का श्राद्ध नहीं करते, उनके घर में कलह और दुःख, दरिद्रता का वास हो जाता है। क्योंकि अतृप्त पूर्वज शाप देकर पितृलोक चले जाते है। और पितरों की संतति पितृदोष की भागी बनकर पीड़ा भोगती है। पितृदोष से मुक्ति पाने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध कर्म करना अति आवश्यक है।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार :

मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि जिस देश और कुल में पूर्वजों के प्रति श्राद्ध कर्म नहीं किये जाते है, वहां निरोगी और वीर पुरुष जन्म नहीं लेते।

गरुड़ पुराण के अनुसार :

गरुड़ पुराण में कहा गया है —

आयु पुत्रान् यशः स्वर्ग कीर्ति पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्युनात् पितृपूजनात्।।

अर्थात् पितरों के प्रति श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करने से आयु, पुत्र, यश, मोक्ष, स्वर्ग, कीर्ति, बल, वैभव, पशु-धन, सुख, धन एवं धान्य का आशीर्वाद मिलता है।

इसप्रकार जो इंसान पितरों के प्रति श्राद्ध कर्म संपन्न करता है, उसे अतुलनीय ऐश्वर्य, अच्छे स्वास्थ्य और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। संसार में श्राद्ध कर्म से बढ़कर अन्य कोई कल्याणकारी मार्ग नहीं है। बुद्धिमान इंसान को हर हाल में श्राद्ध कर्म संपन्न करना ही चाहिए। ऐसे इंसान के परिवार में सदैव सुख शांति विद्यमान रहती है।


श्राद्ध कर्म विशेष रूप से पुत्र द्वारा ही क्यों किया जाता है ?


Shradh Karma or Pinddan Putra Hi Kyun Karta Hai in Hindi : दोस्तों ! कोई भी धार्मिक कार्य हो, उसे पुत्र के हाथ से करने को विशेष महत्व दिया है। मनुस्मृति में पुत्र के बारे में कहा गया है कि “पुं” नामक नरक से “त्र” यानी त्राप करने वाला ही पुत्र कहलाता है। इसी वजह से मनुष्य नरक से रक्षा करने वाले पुत्र की कामना करते है। श्राद्ध कर्म या पिंडदान आदि कर्म पुत्र से ही कराना उत्तम होता है।

पिता का श्राद्ध पुत्र के द्वारा ही होना चाहिए, तभी वह फलीभूत होता है। पुत्र जीवित ना हो तो उसकी पत्नी भी श्राद्ध कर्म कर सकती है। स्त्री के ना होने पर परिवार में कोई सहोदर भाई और सहोदर भाई भी ना हो तो दोहित्र भी श्राद्ध कर्म कर सकते है।

वशिष्ठ स्मृति में बताया गया है कि पुत्रहीन होना एक अभिशाप है। क्योंकि पुत्र होने पर एक पिता लोकों को जीत लेता है। पौत्र होने पर आनंत्य और प्रपौत्र होने पर उसे सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। इसप्रकार पिंडदान, श्राद्ध आदि कर्म करने का पुत्र को ही अधिकार दिया गया है।

तो देखा आपने दोस्तों ! श्राद्ध कर्म का मनुष्य के जीवन में कितना महत्व है। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि श्राद्ध कर्म क्या है ? और अपने पूर्वजों के प्रति श्राद्ध करना क्यों जरूरी है।


ये भी अच्छे से समझे :


एक विनम्र गुजारिश :

आशा है कि आपको आज की जानकारी Shradh Karma Kya Hai | कनागत क्या है और क्यों जरूरी है ? बहुत पसंद आयी होगी। अपने सुझाव और विचार कमेंट बॉक्स में जरूर बताये। अपने पूर्वजों या पितृगणों के प्रति श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर्म करना हर संतान का कर्तव्य है।

अपने जीवित मात-पिता की सेवा करना और अपने मृत पूर्वजों के प्रति श्राद्ध करना आपको अतुलित सौभाग्य प्रदान करेगा। और आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। इसी कामना के साथ। ॐ पितृदेवाय नमः। पितृदेवों की जय हो। धन्यवाद !


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