गणेश चतुर्थी क्या है ? Ganesh Chaturthi Ki Vrat Katha


Ganesh Chaturthi Ki Vrat Katha in Hindi : जय श्री गणेशा दोस्तों ! हमारा देश त्योहारों का देश है। यहाँ हर साल कई त्यौहार बड़ी ही धूम-धाम से मनाये जाते है। हर वर्ष गणपति बाप्पा का त्योहार भी हम बड़े ही हर्षोल्लास से मनाते है। आज हम हमारे प्यारे गणेशा के बारे में बहुत सी रोचक बातें जानने वाले है।

गणपति बाप्पा सर्वप्रथम पूज्य देव है। और भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी त्योहार मनाया जाता है। तो आइए आज हम विघ्नों का नाश करने वाले विघ्नहर्ता देवा गजानंद गणेशजी महाराज और गणेश चतुर्थी के बारे कुछ खास बातें जानते है : Ganesh Utsav Special in Hindi


गणेश चतुर्थी क्या है ? What is Ganesh Chaturthi


Ganesh Chaturthi Kya Hai in Hindi : दोस्तों ! जैसा कि हम सभी जानते है कि हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी त्योहार मनाया जाता है। और ये त्योहार पूरे भारतवर्ष में बड़े ही भव्य तरीके से मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है कि गणेश चतुर्थी को भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को ही क्यों मनाया जाता है ? वो इसलिए क्योंकि इसी दिन दोपहर के समय में गणेशा का जन्म हुआ था।

गणपति बाप्पा सभी देवों में प्रथम पूज्य है। श्री गणेश जी महाराज बुद्धि के देवता है और विघ्नों को हरने वाले है। इनकी दो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि है। गणेशजी की सवारी या वाहन मूषक (चूहा) है। बाबा की अतिशय प्रसन्नता के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन हर घर में सिद्धि विनायक जी का पूजन किया जाता है। बाबा के प्रिय मोदक का भोग लगाकर उन्हें खुश करने का प्रयास किया जाता है। बहुत से लोग गणेश चतुर्थी का व्रत भी करते है।


Ganesh Chaturthi | गणेश चतुर्थी पर पूजन विधि


Ganesh Chaturthi Poojan Vidhi in Hindi : गणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी स्नानदि नित्य कर्म करने के बाद गणेशजी की प्रतिमा बनायीं जाती है। ये प्रतिमा अधिकतर गोबर की, शक्ति अनुसार सोने या तांबे की भी बनायीं जा सकती है। इसके बाद एक कोरे कलश में जल भरकर उसके मुंह पर कपडा बाँध दीजिये। फिर इस पर गणेशजी की प्रतिमा को स्थापित कर देवें। अब आप प्रतिमा पर सिन्दूर चढ़ाकर बाबा का पूजन, आरती करके दक्षिणा अर्पित कर दीजिये। और अंत में 21 लड्डुओं या श्रद्धानुसार भोग लगाकर गणपति बाप्पा का आशीर्वाद प्राप्त कर लीजिये। साथ ही बाबा की प्रसाद को ब्राह्मण, कन्या एवं अन्य सभी में बाँट दीजिये।

दोस्तों ! आपको बता दे कि गणेश जी की पूजा सायंकाल में करना ज्यादा श्रेष्ठ होता है। श्री गणेश जी की पूजन पूर्ण कर लेने के बाद नीची नज़र रखते हुए चन्द्रमा को अर्घ्य देवें और फिर ब्राह्मणों को भोजन करके दक्षिणा देने का भी विधान है। कहा जाता है कि इस दिन चन्द्रमा के दर्शन करना सही नहीं होता, क्योंकि इस दिन चन्द्रमा दर्शन से कलंक लगता है।

अंतिम रूप से कपडे से ढका कलश और प्रतिमा तथा दक्षिणा आचार्य को समर्पित कर देवें। इसके बाद गणेश जी का विसर्जन का उत्तम विधान माना गया है। गणपति बाप्पा की इस तरह से की गयी पूजा विघ्नों और घर के कलेश को हरने वाली होती है। साथ ही जातक को बुद्धि और रिद्धि-सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। गणेश चतुर्थी के दिन व्रत करना भी फलदायी होता है। इस दिन व्रत कथा भी सुनी जाती है। जो पुण्य फल प्रदान करती है। ये व्रत कथा इस प्रकार से है :


Ganesh Chaturthi Ki Vrat Katha | गणेश चतुर्थी व्रत कथा


Ganesh Chaturthi Parv Kyun Manaya Jata Hai in Hindi : गणेश चतुर्थी पर जो कथा सबसे अधिक प्रचलित है वो कुछ इस प्रकार से है :

एक बार बाबा भोले नाथ भोगावती नामक नदी पर स्नान करने की लिए गये। उनके जाने के बाद माँ पार्वती ने अपने तन के मैल से एक प्रतिमा बनायीं, जिसका नाम उन्होंने “गणेश” रखा। इस प्रतिमा में प्राण फूँककर उन्होंने गणेशा को द्वार पर पहरा देने के लिए बैठा दिया और कहा – “पुत्र ! मेरे स्नान पूर्ण करने तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना”

गणेशा माता की आज्ञानुसार द्वार पर मुगदल लेकर बैठ गये। कुछ समय बाद भोलेनाथ भोगावती में स्नान करके लौटे और भीतर जाने लगे। तभी गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया। भोलेनाथ ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित हो उठे। क्रोध में आकर उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद वे भीतर चले गये।

भोले नाथ को नाराज देखकर पार्वती जी ने समझा कि भोजन में देर हो जाने से महादेव नाराज हो गये है। इसलिए उन्होंने शीघ्र ही दो थालियों में भोजन परोसा और महादेव को भोजन के लिए बुलाया।

गणेश चतुर्थी पर्व क्यों मनाया जाता है ? :

दूसरी थाली में भोजन देखकर शिवजी आश्चर्य में पड़ गये और पूछने लगे कि “देवी ! ये दूसरी थाली किसके लिये है।” तब पार्वती जी बोली “ये दूसरी थाली अपने पुत्र गणेश के लिए है, जो बाहर पहरा दे रहा है” क्या आपने उसे बाहर देखा नहीं है ?

ऐसा जानकार शिवजी ने और अधिक आश्चर्य से कहा “देखा तो था, लेकिन उसने मुझे भीतर आने से रोकने का प्रयास किया और मैंने क्रोध में आकर उसे उद्दंड बालक जानकार उसका सिर काट दिया”

ये सुनकर पार्वती जी को गहरा आघात लगा और वे विलाप करने लगी। और उन्होंने प्रिय गणेश को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। पार्वती जी के हठ करने पर महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। इसप्रकार पुत्र गणेश को फिर से पाकर पार्वती जी प्रसन्न हो गयी। फिर उन्होंने महादेव और पुत्र गणेश को बड़े ही चाव से भोजन कराया और बाद में स्वयं ने भी भोजन किया।

ये घटना भाद्रपद मास के शुक्ल चतुर्थी के दिन घटित हुयी थी। इसलिए इस दिन गणेश चतुर्थी का पुण्य पर्व मनाया जाता है।


Sidhi Vinayak Vrat | गणेश चतुर्थी – सिद्धि विनायक व्रत


Sidhi Vinayak Vrat on Ganesh Chaturthi in Hindi : गणेश चतुर्थी के अवसर पर ही सिद्धि विनायक व्रत भी किया जाता है। गणपति के जन्मदिवस या जन्मोत्सव के रूप में गणेश चतुर्थी पर्व मनाया जाता है। अगर इस दिन मंगलवार या रविवार हो तो इसे महाचतुर्थी समझा जाता है। इस दिन गणेश-पूजन के समय आप निम्न मंत्र का जाप अवश्य कीजिये

“एकदंतं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं चतुर्भुजं।
पाशांकुशधरं देवं ध्यायेत्सिद्धि विनायकं ।।”

इस दिन रात के समय चंद्र दर्शन करना शुभ नहीं माना जाता। यदि भूलवश चंद्र दर्शन हो भी जाते है तो स्यमंतक मणि कथा सुननी चाहिए।


इस दिन ना देखे चन्द्रमा, लग सकता है कलंक :


Kalank Se Mukti Paane Ka Mantra in Hindi : अगर आप गलती से भी गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन कर लेते है, तो आपको कलंक से मुक्ति पाने के लिए निम्न मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए तथा स्यमंतक मणि कथा का श्रवण करना उत्तम रहता है :

“सिंह: प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हत:।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकर:।।”


कलंक दोष दूर करने के लिए स्यमंतक मणि कथा


Kalank Niwarak Syamantaka Mani Katha in Hindi : एक बार नंदकिशोर ने सनत्कुमारों को बताया कि चौथ के दिन चंद्र दर्शन करने से श्रीकृष्ण पर कलंक लगा था, तब ये लांछन सिद्धि विनायक व्रत करने से ही दूर हुआ था। ये सुनकर सनत्कुमार आश्चर्य में पड़ गये और उन्होंने श्री कृष्ण के कलंक लगने की सम्पूर्ण कथा सुनाने का आग्रह किया।

नंदकिशोर कथा सुनाते हुए कहने लगे कि एक श्रीकृष्ण जरासंध के डर से समुद्र के मध्य अपनी नगरी बसाकर रहने लगे। इस नगरी को आज द्वारिकापुरी कहा जाता है। इसी द्वारिकापुरी में रहने वाले सत्राजित यादव ने भगवान सूर्यनारायण की आराधना की। तब भगवान सूर्य देव ने प्रसन्न होकर उन्हें नित्य आठ बार सोना देने वाली स्यमन्तक मणि अपने गले से उतारकर दे दी। जब सत्राजित यादव मणि प्राप्त करके समाज में लौटे तो भगवान श्रीकृष्ण ने उस मणि को पाने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन सत्राजित ने श्रीकृष्ण को स्यमन्तक मणि नहीं दी, बल्कि अपने भाई प्रसेनजित को दे दी।

अब एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि प्रसेनजित शिकार करने के लिए गया हुआ था। वहां एक शेर ने उसे मारकर उस मणि को छीन लिया। अब रीछों के राजा जामवंत ने उस शेर को मार डाला और उस मणि को लेकर गुफा में चला गया। इधर प्रसेनजित के कई दिनों तक शिकार से नहीं लौटने पर सत्राजित ने सोचा कि लगता है श्रीकृष्ण ने मणि को पाने के लिए प्रसेनजित का वध कर दिया है। और बिना सच्चाई को जाने उसने चारों तरफ ढिंढोरा पिटा दिया कि श्रीकृष्ण ने प्रसेनजित को मारकर स्यमंतक मणि छीन ली है।

झूठे कलंक से मुक्ति दिलाने वाली कथा :

इस कलंक को मिटाने के लिए श्रीकृष्ण बहुत से लोगों के साथ में प्रसेनजित को ढूंढने जंगल में गये। पहुंचने पर उन्हें शेर द्वारा प्रसेनजित को मारने और फिर शेर को जामवंत को मारने का पता चल गया। रीछ के पैरों को खोजते-खोजते वे जामवंत की गुफा तक पहुंच गये और गुफा के भीतर जाने पर उन्होंने देखा कि जामवंत की पुत्री उस मणि के साथ खेल रही है। जैसे ही जामवंत ने श्रीकृष्ण को गुफा में देखा। वो श्रीकृष्ण से युद्ध करने के लिये तैयार हो गया।

युद्ध छिड़ने पर श्रीकृष्ण के साथियों ने गुफा के बाहर सात दिनों तक उनका इंतज़ार किया। लेकिन तब भी श्रीकृष्ण के ना लौटने पर वे सभी साथी उन्हें युद्ध में मरा जानकार द्वारिकापुरी लौट गये। उधर 21 दिनों तक श्रीकृष्ण और जामवंत में युद्ध चलता रहा और जामवंत श्रीकृष्ण को पराजित नहीं कर सका। तब जामवंत ने सोचा कि कहीं श्रीकृष्ण अवतारी पुरुष तो नहीं है। ऐसा विचार करके उसने अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया और मणि दहेज़ में दे दी।

जब श्रीकृष्ण मणि लेकर द्वारिकापुरी लौटे तो सत्राजित अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हुआ। इस लज्जा से मुक्ति पाने के लिए सत्राजित ने भी अपनी पुत्री का श्रीकृष्ण के साथ विवाह कर दिया।

कलंक दोष दूर करने वाली कथा :

कुछ समय के बाद श्रीकृष्ण किसी कार्यवश इंद्रप्रस्थ प्रस्थान कर गये। पीछे से अक्रूर और ऋतु वर्मा की राय से शतधन्वा यादव ने सत्राजित को मार डाला और मणि को अपने हवाले कर लिया। सत्राजित की मृत्यु का समाचार पाकर श्रीकृष्ण तत्काल द्वारिका लौट आये। श्रीकृष्ण शतधन्वा को मारकर मणि छीन लाने को आतुर हो गये और बलरामजी भी उनका साथ देने को आगे आ गये। ये जानकार शतधन्वा मणि अक्रूर को देकर वहां से भाग निकला। श्रीकृष्ण ने उसका पीछा किया और वध कर दिया, लेकिन उन्हें वो मणि उससे नहीं मिल सकी।

बलरामजी जब वहां पहुंचे तो उन्होंने कृष्ण से मणि के बारे में पूछा। कृष्णजी ने कहा कि शतधन्वा के पास मणि नहीं मिली। इस बात को सुनकर बलराम जी को बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ और वे नाराज होकर विदर्भ चले गये। जब श्रीकृष्ण द्वारिका वापस लौटे तो लोगों ने फिर से उनपर आरोप लगाया कि श्रीकृष्ण ने मणि के लालच में अपने भाई बलराम को भी त्याग दिया।

श्रीकृष्ण को इस अपमान से बहुत दुःख पंहुचा। वे इस कलंक के शोक में डूबे थे कि तभी वहां नारद जी आ गये और उन्होंने कहा – “आपने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन किये थे, इसीलिए आपको इस तरह कलंकित होना पड़ रहा है”

इस दिन गलती से चंद्र दर्शन कर ले तो पढ़े ये कथा :

तब श्री कृष्ण ने पूछा कि क्या कारण है जो इस दिन चंद्र दर्शन मात्र से मनुष्य कलंकित हो जाता है। तब नारद जी ने कहा कि एक बार ब्रह्मदेव ने इस दिन गणेश जी का व्रत किया था। तब गणेशजी ने प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव को वर मांगने को कहा। तब ब्रह्माजी ने वर माँगा कि मुझमें कभी सृष्टि की रचना करने का मोह ना जागे। जैसे ही गणेशजी उन्हें उनका इच्छित वर देकर आगे बढे। चन्द्रमा ने उनके विचित्र व्यक्तित्व को देखकर उपहास किया। रुष्ट होकर गणेश जी ने चन्द्रमा को शाप दिया कि आज से कोई तुम्हारा मुंह भी देखना पसंद नहीं करेगा।

शाप देकर गणेश जी अपने लोक चले गये और शापित चन्द्रमा भी मानसरोवर की कुमुदिनियों में जा छिपा। अब चन्द्रमा के बिना प्राणियों को कष्ट होने लगा। प्राणियों के कष्ट को दूर करने के लिए ब्रह्माजी की आज्ञा से सभी देवताओं ने गणेशजी का व्रत किया। और उनके व्रत से प्रसन्न होकर गणेश जी ने वरदान दिया कि चन्द्रमा शाप से मुक्त तो हो जायेगा, लेकिन फिर भी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन जो भी चंद्र दर्शन करेगा, उसे झूठा कलंक तो जरूर लगेगा ही। और जो इस दिन सिद्धि विनायक का व्रत करेगा। वो इस कलंक से मुक्ति पा सकेगा।

पूरी कथा सुनने के बाद श्रीकृष्ण ने भी झूठे कलंक से मुक्ति पाने के लिये सिद्धि विनायक का यही व्रत किया था।


आखिरी बात :

तो इसप्रकार आज हमने गणेश चतुर्थी क्या है ? Ganesh Chaturthi Ki Vrat Katha | गणपति बाप्पा की व्रत कथा का माहात्म्य समझा। सम्पूर्ण कथा को सुनने के बाद आपके मन में भी गणेश जी के बारे में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति का प्रसार हुआ होगा।

साथ ही आप भी गणेश चतुर्थी व्रत करने को उत्सुक हो रहे होंगे। जरूर दोस्तों ! गणपति बाप्पा आप सभी की मनोकामना जरूर पूरी करे। इसी कामना के साथ। एक बार प्रेम से बोलिये – गजानंद गणेश जी महाराज की जय जय जय। धन्यवाद !


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एक विनम्र विनती :

दोस्तों ! आपको आज की “Ganesh Chaturthi Ki Vrat Katha | गणेश चतुर्थी क्या है ?” ये जानकारी कैसी लगी। कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताये। उम्मीद है कि आपको गणेश चतुर्थी के बारे में ये सब रोचक कथाएं जानकार बहुत अच्छा लगा होगा। इस जरूरी जानकारी को अपने परिवारजनों, रिश्तेदारों और साथियों तक जरूर शेयर कीजिये। सिद्धि विनायक जी की कृपा हम सभी पर बनी रहे। जय श्री गणेशा !


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